अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ।

आपका कर्म आपको आन्नदित करेगा।सभी कार्य मर्यादित होकर व संयम में करें।मन की शुद्धि मोक्ष प्राप्ति का साधन – डाॅ0 वेद प्रताप वैदिकभिवानी। 19 फरवरी, 2023। संतों का समाज निर्माण में अद्वितीय योगदान रहा है। संतो द्वारा दिया गया साहित्यिक ज्ञान सामाजिक जीवन निर्वाह के लिए सरल मार्ग प्रशस्त करता है। संतों का सान्निध्य न केवल मानसिक सुख प्रदान करता है, बल्कि व्यवहारिक जीवन में आने वाली अनेक मुश्किलों का सामना करने की शक्ति भी देता है। यह उद्गार आदर्श महिला महाविद्यालय, भिवानी में आयोजित अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी जिसका विषय ’संत-साहित्य की वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता’ के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि डाॅ0 वेद प्रताप वैदिक (प्रख्यात चिंतक, वरिष्ठ पत्रकार, नई दिल्ली) ने कहे। संगोष्ठी का आयोजन हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकुला व महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। मुख्य अतिथि ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि पंचविकारों से दूर होकर सभी कार्य मर्यादित व संयम में रहकर करने से इसी जन्म में मोक्ष प्राप्ति संभव है। मनुष्य को अपना आचरण शुद्ध रखना चाहिए। जात-पात की भावना से ऊपर उठकर स्वयं पर विश्वास रखें व अपनी बुद्धि से कार्य करें। हमें दूसरों का कहा बिना चिंतन व मनन न मानकर अपने पर विश्वास रखना चाहिए। उन्होंने सांख्य दर्शन, योग दर्शन, उपनिषद, हिन्दी शास्त्र एवं धर्मग्रन्थों का संक्षिप्त रूप संगोष्ठी में साँझा किया। संगोष्ठी में लगभग 80 विद्वानों ने पंजीकरण करवाया व संतों से सम्बन्धित उपविषयों पर शोधपत्र प्रस्तुत किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुरेश चन्द्र शुक्ल ’शरद आलोक’ प्रवासी हिंदी साहित्यकार, ओस्लो, नार्वे ने की। कार्यक्रम में बतौर बीज वक्ता डाॅ0 संजीव चैहान, निदेशन संत साहित्य शोधपीठ, म.द.वी., रोहतक रहे। द्वितीय सत्र में अध्यक्ष डाॅ0 राकेश उपाध्याय व मुख्य वक्ता डाॅ0 कृष्ण कुमार कौशिक रहे। तृतीय सत्र में अध्यक्ष प्रो0 किशना राम बिश्नोई व मुख्य वक्ता डाॅ0 सिद्धार्थ शंकर राय रहे। समापन सत्र में बतौर मुख्य वक्ता डाॅ0 संजीव चैहान रहे। इस अवसर पर महाविद्यालय प्रबन्धकारिणी समिति के महासचिव अशोक बुवानीवाला, उपाध्यक्ष कमलेश चैधरी, कोषाध्यक्ष प्रीतम अग्रवाल, सदस्य पवन केडिया, सुभाष चन्द्र, डाॅ0 पवन बुवानीवाला, सुरेश दौरालिया सहित विभिन्न महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों से प्राध्यापकों ने कार्यक्रम में उपस्थिति दर्ज की। कार्यक्रम का शुभारम्भ संतों की वाणी के सम्मुख अतिथिगण द्वारा दीप प्रज्जवलित कर व छात्राओं द्वारा मंत्रोच्चारण करके किया गया। कार्यक्रम में सर्वप्रथम संगीतज्ञ डाॅ0 राम अवतार ने दादू जी महाराज का ’’जो जो पीबत राम रस, त्यों त्यों बढ़े प्यास’’ भजन सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। महासचिव अशोक बुवानीवाला ने अतिथिजनों का अपने वक्तव्य के माध्यम से स्वागत किया और कहा कि आज की संगोष्ठी का विषय बहुत ही प्रासंगिक रहा है। वैश्वीकरण और विश्व बाजारवाद के युग में कम्यूनिटी केवल एक कोमोडिटी बनकर रह गया है और मानवीय संवेदनाओं का निरन्तर गला घुटता जा रहा है। संतो के सानिध्य के द्वारा ही समाज में संतुलन बनाया जा सकता है। संतों द्वारा दिए गए सिद्धांत एवं संत वाणी ही सभ्य समाज की आधारशीला है। कार्यक्रम अध्यक्ष सुरेश चन्द्र ने हिन्दी साहित्य पर बल डालते हुए कहा कि आज विदेशों में भारतीय मूल के संस्कारों व त्योहारों का बोलबाला है। आज हमें संत वाणी के प्रति जागरूक होकर अपना फर्ज निभाना चाहिए, तभी हम हर घंटे तरक्की कर आत्मनिर्भर बन सकते हैं। उन्होंने हिन्दी भाषा के विकास एवं प्रचार पर भी बल दिया। साथ ही यह भी बताया कि नार्वे में हिन्दी के साथ तमिल एवं पंजाबी भाषा को अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में अपनाया गया है। उन्होंने राजनीति एवं साहित्य को एक ही सिक्के के दो पहलु के रूप में बताया। मुख्य वक्ता डाॅ0 संजीव चैहान ने नारी के सम्मान पर बल देते हुए संत साहित्य में नारी के सम्मान को विभिन्न उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया। निदेशिका डाॅ0 अरूणा सचदेव ने शिक्षाविदों को संगोष्ठी में पधारने पर धन्यवाद किया और कहा कि संत साहित्य हमें बहुत कुछ सिखाता है। संतों की वाणी से हमें मानसिक एवं आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है। कार्यक्रम संयोजिका वं मंच संचालन डाॅ0 मधुमालती ने किया और मंच के माध्यम से संत वाणी की महिमा का व्याख्यान उन्होंने संत वाणी के विभिन्न दोहों से दिया। साथ ही सभी विद्वतजनों के वक्तव्यों को भी संक्षिप्त किया। कार्यक्रम सहसंयोजक व समापन सत्र में मंच संचालक डाॅ0 रमाकान्त शर्मा रहे। कार्यक्रम में महाविद्यालय का समस्त शिक्षक, गैर-शिक्षक वर्ग एवं छात्राएं उपस्थित रही।.